Tuesday 10 January 2012

ख़ुदा का नूर


ख़ुदा का नूर by Farhat Durrani Jan.10th, 2012


ख़ुदा का नूर

ख़ुदा तो सारे आसमान और ज़मीन का नूर है उसके नूर की मिसाल (ऐसी) है जैसे एक ताक़ (सीना) है जिसमे एक रौशन चिराग़ (इल्मे शरीयत) हो और चिराग़ एक शीशे की क़न्दील (दिल) में हो (और) क़न्दील (अपनी तड़प में) गोया एक जगमगाता हुआ रौशन सितारा (वह चिराग़) जैतून के मुबारक दरख्त (के तेल) से रौशन किया जाए जो न पूरब की तरफ हो और न पश्चिम की तरफ (बल्कि बीचों बीच मैदान में) उसका तेल (ऐसा) शफ्फाफ हो कि अगरचे आग उसे छुए भी नही ताहम ऐसा मालूम हो कि आप ही आप रौशन हो जाएगा (ग़रज़ एक नूर नहीं बल्कि) नूर आला नूर (नूर की नूर पर जोत पड़ रही है) ख़ुदा अपने नूर की तरफ जिसे चाहता है हिदायत करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है

सूरह-अन-नूर आयत:35
क़ुर'आन

ख़ुदा, ख़ुदा है, वो सब पे क़ादिर है जब तो फिर क्यों
तमाम खल्के-ख़ुदा को शक है.
वो चाह ले तो तमाम दुनिया को एक पल में मिटा के रख दे
मगर वो मखलूक के दिलों में
मुहब्बतों के चराग़ रोशन किए हुए है.
हवस-परस्ती में रास्ते से भटक गए हैं जो चंद इन्सां
वही तो अपनी शिकस्त ख़ुर्दा अना की ज़िद में
अड़े हुए हैं.
वो नफ़रतों की तमाम फ़सलों को खून देने में मुन्हमिक हैं
उन्हें पता भी नहीं कि उनका ये कारे-बेजा
हमारी नस्लों को उनके वरसे में जंग देगा
तमाम इंसानियत की चीख़ें सुनेंगे हम-तुम
ज़मीं पे क़ह्तुर्रिज़ाल होगा.
सो, ऐसा मंजर कभी न आए
ख़ुदा-ए-बरतर
दुआ है तुझ से
हवस-परस्तों के तंग दिल को वसीअ कर दे
कुदूरतों को मिटा के उन में भी नूर भर दे
मुहब्बतों का सुरूर भर दे, मुहब्बतों का सुरूर भर दे!

-संजय मिश्रा 'शौक'