Thursday 8 December 2011

मोजिज़ा है हुसैन(अ.स) का मातम,,आज भी मोजिज़े दिखाता है

Farhat Durrani December 07, 2011


मोजिज़ा है हुसैन(अ.स) का मातम,,आज भी मोजिज़े दिखाता है
14 सदियाँ गुज़र गईं लोगों खून-ए-शब्बीर अब भी ताज़ा है

ये वो मेराज है इबादत की जिसकी बानी है सानी-ए-ज़हरा
ये इबादत जहां भी होती है वाँ पहुँचता है ख़ाना-ए-काबा
क़ुदसी आ कर सफें बनाते हैं, नौहे क़ुर'आन पढ़ने आता है..

इसकी मसनद है मजलिस-ए-शब्बीर और रियासत है करबला इसकी
इसकी तलवार दस्त-ए-मोमिन है, खूं से रंगीन है क़बा इसकी
दीन को इसने ज़िन्दगी दी है, शह के क़ातिल को मार डाला है..

इसका मंशूर नौहा-ख्वानी है इसमें शामिल हैं 2 जहाँ के बैन
हाय शब्बीर इसका नारा है इसकी आवाज़ है हुसैन - हुसैन
यह ही नक़क़ारा-ए-ख़ुदा भी है, ये ही एलान-ए-फ़तेह काबा है..

जिसको हुब्बे रसूल(स.अ.व) है वो ही,ग़म-ए-सिब्ते नबी में रोता है
अपने सीने पे हाथ हम मारें, दर्द ग़ैरों के दिल में होता है
हक़-ओ-बातिल की यह कसौटी है,दीं की तबलीग़ का हवाला है..

सोचिये क्या है मातमे ज़ंजीर, ज़ख्मे सज्जाद की निशानी है
यादे शब्बीर में अगर ना बहे तो समझलो के खून पानी है
सबसे आला जिहाद दुनिया में ख़ुद ही अपना लहू बहाना है..

जब भी होता है मातमे सरवर, रूह-ए-ज़हरा दुआएं देती है
आज भी करबला में जा के सुनो,कोई बीबी सदाएं देती है
घर किसी का ना इस तरहा उजड़े,मेरा घर जिस तरहा से उजड़ा है..

शह ने तन्हा जवाँ के लाशें को,रन में किस तरहा से उठाया था
बस ये ही वो मुक़ाम है के जहां, ख़ुद इब्राहीम लडखडाया था
शह के अज़्मो-हौसले के लिए अम्बिया का सलाम आया है..

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